बच्चों के व्यवहार सुधारने के लिए व्यवहारिक थेरेपी (Behavior Therapy) कैसे काम करती है?

बच्चों के व्यवहार सुधारने के लिए व्यवहारिक थेरेपी (Behavior Therapy) कैसे काम करती है?

व्यवहारिक थेरेपी (Behavior Therapy) एक वैज्ञानिक और प्रभावी तरीका है, जिसका उपयोग बच्चों के नकारात्मक या अस्वीकृत व्यवहारों को बदलने और सकारात्मक व्यवहारों को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। यह थेरेपी इस आधार पर काम करती है कि व्यवहार सीखा जाता है, इसलिए उसे बदला भी जा सकता है।

कैसे काम करती है व्यवहारिक थेरेपी?


व्यवहारिक थेरेपी में बच्चे के व्यवहार के पीछे की वजहों को समझा जाता है और फिर उसके अनुसार विशेष तकनीकों का इस्तेमाल करके व्यवहार में सुधार किया जाता है। इसे आमतौर पर इन चरणों में लागू किया जाता है:


  1. व्यवहार की पहचान (Identification of Behavior):
  2. सबसे पहले बच्चे के उस व्यवहार को चिन्हित किया जाता है जिसे सुधारना है—जैसे झूठ बोलना, गुस्सा करना, ध्यान न देना, या स्कूल में असहयोग करना।
  3. मूल्यांकन (Assessment):
  4. बच्चे के व्यवहार की आवृत्ति, तीव्रता, और परिस्थितियाँ जाँची जाती हैं कि कब और क्यों वह व्यवहार हो रहा है। इसके लिए अभिभावकों, शिक्षकों, और बच्चे के साथ बातचीत की जाती है।
  5. लक्ष्य निर्धारण (Setting Goals):
  6. स्पष्ट और मापने योग्य लक्ष्य तय किए जाते हैं—जैसे “अगले एक महीने में गुस्सा करने की घटनाओं को 50% कम करना।”
  7. प्रेरणा और परिणाम (Reinforcement and Consequences):
  8. व्यवहार को बदलने के लिए दो मुख्य तरीके अपनाए जाते हैं:
  9. सकारात्मक प्रोत्साहन (Positive Reinforcement): जब बच्चा अच्छा व्यवहार करता है तो उसे इनाम या प्रशंसा दी जाती है ताकि वह व्यवहार दोहराए।
  10. नकारात्मक परिणाम (Punishment or Negative Consequences): अस्वीकृत व्यवहार के लिए उचित सीमाएँ या नतीजे दिए जाते हैं ताकि बच्चा उस व्यवहार को छोड़ सके।
  11. व्यवहार बदलने की तकनीकें (Techniques Used):
  12. मॉडलिंग (Modeling): बच्चे को अच्छा व्यवहार दिखाकर उसे सिखाना।
  13. शेड्यूल्ड रिवार्ड्स (Token Economy): छोटे-छोटे पुरस्कार या टोकन देना, जो बाद में बड़े इनाम में बदले जा सकते हैं।
  14. सिस्टमैटिक डिसेंसेटाइजेशन (Systematic Desensitization): धीरे-धीरे डर या तनाव पैदा करने वाले व्यवहार को कम करना।
  15. शेड्यूल्ड टाइम-आउट (Time-Out): अनुचित व्यवहार पर थोड़े समय के लिए बच्चे को अलग रखना।
  16. प्रगति का मूल्यांकन (Monitoring Progress):
  17. नियमित रूप से बच्चे के व्यवहार की समीक्षा की जाती है और आवश्यकतानुसार थेरेपी में बदलाव किया जाता है।
  18. अभिभावकों की भागीदारी (Parental Involvement):
  19. अभिभावकों को भी थेरेपी में शामिल किया जाता है ताकि वे घर पर भी व्यवहारिक तकनीकों को लागू कर सकें और बच्चे को सही दिशा दे सकें।

व्यवहारिक थेरेपी के फायदे:

  1. बच्चे में सकारात्मक बदलाव आते हैं जो स्थायी होते हैं।
  2. आत्म-नियंत्रण और आत्म-सम्मान बढ़ता है।
  3. स्कूल, घर और सामाजिक जीवन में बेहतर तालमेल बनता है।
  4. मानसिक तनाव और आक्रामकता कम होती है।
  5. बच्चों के साथ-साथ परिवार के लिए भी बेहतर वातावरण बनता है।


व्यवहारिक थेरेपी बच्चों के नकारात्मक व्यवहारों को समझदारी से बदलने और उन्हें स्वस्थ, सकारात्मक जीवनशैली अपनाने में मदद करती है। यह थेरेपी वैज्ञानिक और व्यवस्थित रूप से बच्चे के व्यवहार में सुधार लाती है, जिससे बच्चे का मानसिक और सामाजिक विकास बेहतर होता है।

अगर आपके बच्चे के व्यवहार में कोई समस्या हो तो विशेषज्ञ से संपर्क कर के व्यवहारिक थेरेपी अपनाना एक असरदार विकल्प हो सकता है।

Dr Satvinder Singh Saini
Dr Satvinder Singh Saini

Consultant Clinical Psychologist


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